Ram Mandir ki Kahani:  आइए जानते है त्रेता युग से 22 जनवरी 2024 तक की राम मदिर की कहानी

Last updated on February 29th, 2024 at 12:45 pm

Ram Mandir ki Kahani,history of ram mandir

Ram Mandir ki Kahani: प्रभु श्री राम की कहानी से आज बच्चा बच्चा वाकिब है बचपन में या लॉकडाउन में आपने  रामायण तो जरुर देखि होगी | रामायण के लास्ट में हमको देखने को मिलता है की ,भगवन राम जल समाधी के बाद गरुड़ पर सवार होकर बैकुण्ड के लिए निकल जाते है | लेकिन बाद अयोध्या या अयोध्या वासियों का क्या हुआ | ये किसी को पता हो या ना हो लेकिन अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हो गया है | जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथो 22 जनवरी 2024  को हुआ है | ये जरुर सुना होगा, अयोध्या में बने इस मंदिर की कहानी भगवान राम के बैकुण्ड जाने के बाद से ही शुरू हो जाती है | जब इनके पुत्र कुश दुवरा अयोध्या में Ram Mandir का निर्माण कराया जाता है| क्या आपको इस मंदिर के इतिहास के बारे में पता है |

राम मंदिर शुरू होने की कहानी (Ram Mandir ki Kahani):

Ram Mandir ki Kahani: भगवान राम के बैकुण्ड जाने के बाद इनके 44 पीढियों ने अयोध्या पर राज किया | जब राम के पुत्र कुश अयोध्या के राजा थे , तब इन्होने भगवान राम के जन्मस्थल पर एक जन्मभूमि मंदिर के साथ -साथ कई छोटे -छोटे मंदिर बनवाए | मंदिरों की हालत समय के साथ जर्जर होने चली गई | जिन्हें बाद में 57 ई पूर्व के आसपास उज्जैन के राजा विक्रम आदित्य जी ने मरम्मत करवाई | लेकिन अप्रैल 1526 में बाबर के भारत आने के बाद मुग़ल शासन की शुरुआत होती है |

राम मंदिर को तोड़ने की कहानी :

Ram Mandir ki Kahani: 1528-1529 में बाबर अयोध्या आ जाता है , तो बाबर अपने सेनापति मिरबाकी से मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाने का हुक्म देता हैं | तो मिरबाकी मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनवा देता है और हिन्दुओ को अंदर आने पर रोक लगा देता है , और फिर लगभग 190 साल बाद यानि 1717 ई में आमेर के राजा जयसिंह दित्य मस्जिद के बाहर जमीन देखकर आँगन में एक चबूतरा बनवाते है | जहाँ पर राम लला की मूर्ति को स्थापित किया जाता है | अब यहाँ होता क्या है मस्जिद के अंदर तो मुस्लीम नवाज करते थे जबकि बाहर चबूतरे पर हिन्दू भगवान श्री राम की पूजा किया करते थे | ऐसा कई सालो तक चलता रहा और फिर 1853 में भारत के 14 सांप्रदायिक आखाड़ो में से एक निरमोही आखाडा ने याचिका दायर की इस मस्जिद के जगह पर राम मंदिर था , जिसको बाबर के समय में तोड़कर मस्जिद बना दी गई थी | अब मस्जिद को तोड़कर हम मंदिर बनवायेंगे, इसमें मुस्लमानोके द्वारा इसपर विरोध किया जाता है | (Ram Mandir ki Kahani)

अब यही से हिन्दू और मुसलमानों में जुंग सुरु हो जाती है. कई जगहों पर दंगे शुरु होने लगते है. इन दंगो को रोकने के लिए 1859 में ब्रिटिश सरकार ने मंदिर और मस्जिद के बिच में फेन्सिंग करवा देती है,जिससे कुछ सालो के लिए ये मामला सुलझ जाता है. अब होता क्या है ,निर्माही अखाड़ा के महंत रघुबर दास जी फ़ैजाबाद डिस्ट्रिक कोर्ट में राम चबूतरे पर छतरी बनाने की अपील करते है, लेकिन उनके अपील को ख़ारिज कर दिया जाता है. अपील के ख़ारिज होने से हिन्दू कम्युनिटी में रोष की स्थिति पैदा हो जाती है और जगह जगह हिंशा शुरू हो जाती है. इस हिंसा मे मस्जिद और राम चबूतरे के बिच बनी फेंसिंग के साथ मस्जिद की दिवार को भी गिरा दिया जाता है.फिर ब्रिटिश सरकार द्वारा दिवार को बनाने के साथ ही एक नियम लागु किया जाता है की मस्जिद को केवल जुम्मे की नवाज के लिए ही खोला जायेगा और फिर भारत देश आजाद होने तक यही व्वस्था चलती रही थी. (Ram Mandir ki Kahani)

राम मंदिर मसले पर आजादी के बाद क्या हुआ?

Ram Mandir ki Kahani: भारत देश की आजादी के दो साल बाद यानि 23 दिसम्बर 1949 को सुबह होते ही हिन्दू समुदाय द्वारा मस्जिद के अंदर घंटियों और शंखनाद के आवाज के साथ पूजा की जाती है,जिससे भीड़ अक्कात्रित हो जाती है. हिन्दुओ की भीड़ पूजा करने के लिए तो मुसलमानों की भीड़ इसका विरोध करने के लिए जमा हो जाता है और फिर से एक बार विद्रोह का माहौल बन जाता है. इतनी भीड़ में पुलिस भी कुछ नही कर सकती थी, तो वहां के DM के के नायर इसकी जानकारी PMO को देते है. जब ये मामला दिल्ली पहुचता है तो उस समय pm जवाहर लाल नेहरु थे. जवाहर लाल नेहरु pm ऑफिस से k.k. नायर को एक आदेश पारित करते हुए कहते हैं की जबरदस्ती करके किसी भी चीज को हासिल करना गलत है.मूर्ति को तुरंत मस्जिद से निकालकर बहार किया जाना चाहिए. इसके जबाब में kk नायर pm को एक पत्र लिखते हुए कहते हैं की यहाँ के माहौल को देखते हुए मूर्ति को किसी भी हालत में बाहर नही निकाला जा सकता है,क्योकि यहाँ क्र पुजारियों का मानना है की अगर बिना पूजा हवन के मूर्ति बाहर हटाई गयी तो पाप लगेगा.

अब pmo के तरफ से kk नायर को पत्र आता है की आपको जो आदेश दिया गया है उसका पालन करे और मूर्ति को बहार निकालिए. इस पत्र के जबाब में kk नायर दो सुझाव लिखकर पत्र में भेजते हैं- पहला ए की यहाँ का माहौल संभाल से बाहर है, मस्जिद की सुरक्षा और लोगो की भीड़ को देखते हुए मस्जिद के बाहर एक जाली वाला दरवाजा लगाना होगा जिससे मस्जिद को कोई नुकसान नहीं हो और लोग बाहर से ही नमाज अदा कर सकेंगे और दूसरा ये की इस मामले को court को सौप देना चाहिए जिससे कार्ट का फैसला आने तक सब लोग शांत रहेगे. इन सुझावों के बाद kk नायर ने अपना इस्तीफा दे दिया, इनके इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया गया लेकिन pmo को सुझाव बहुत बढ़िया लगा.

इस तरह ये मामला कोर्ट में चली जाती है और रामलला की मूर्ति मंदिर में ही रहती है. अब हिन्दू पक्ष से निर्मोही अखाडा और मुस्लिम पक्ष से सुन्नी बफ्फ़ बोर्ड, दोनों के तरफ से केश दायर किया जाता है. जिसमे निर्मोही अखाडा कहता है की इसमें तो शुरू से ही राम मंदिर था और यहाँ से तो मूर्ति भी निकल आई है, इसलिए इसका पूरा अधिकार मुझे दिया जाये, ताकि राम lala यहाँ की मंदिर स्थापित कर पाए. वही सुन्नी बफ्फ़ बोर्ड दावा करता है की आहा शुरुवात से ही मस्जिद रही है, इसलिए इसका पूरा अधिकार हमें दिया जाये.

करीब 20 से 25 साल तक ये दोनों केश कोर्ट में रहते हैं अभी तक कांग्रेस पार्टी सता में थी. 1980 में जनसंघ से अलग होकर bjp का गठन होता है, bjp के गठन के बाद विश्व हिन्दू परिषद्, शिवसेना, बजरंग दल और RSS जैसे सभी हिन्दू दल सक्रिय हो जाते हैं. 1984 में विश्व हिन्दू परिसद के द्वारा एक धर्म संसद का आह्वान किया जाता है जिसमे BJP के बड़े बड़े नेता शामिल हिते हैं. इस धर्म संसद में विश्व हिन्दू परिसद के प्रेसिडेंट अशोक शिन्घल घोषणा करते हैं की “राम मंदिर बनेगा और जरुर बनेगा’’ अब इस मंदिर को बनवाने के लिए पुरे देश से इटे मंगवाई जाएगी .

ये बात पुरे देश में आग की तरह फ़ैल जाती है. 1986 में राम मंदिर का गेट खोलवाने का एक मामला कोर्ट में आता है तो राजीव गाँधी हिन्दुओ का विश्वास जितने के लिए 1 घंटे के अंदर मंदिर का गेट खुलवा देते हैंI

25 सितम्बर 1990 को सोमनाथ से एक यात्रा शुरू होती है और कई राज्यों से होते हुए अयोध्या पहुचती है लेकिन इस यात्रा का विरोध किया जाता है और जहा से यह यात्रा निकलती है वह विरोध शुरू हो जाता है. कई राज्यों में विरोध होने के बाद 23 अक्टूबर 1990 को ये यात्रा बिहार के समस्तीपुर पहुचती है तो बिहार के CM लालू यादव समस्तीपुर के DIG को आदेश देते हैं की इस यात्रा को रोक दिया जाये और लाल कृष्ण अडवानी को गिरफ्तार किया जाये, और होता भी ऐसा ही है. DIG के द्वारा BJP के कुछ नेताओ समेत लाल कृष्ण अडवानी को गिरफ्तार कर लिया जाता है और 12 दिन तक इन्हें सिचाई विभाग के POST OFFICE में रखा जाता है.

दरअसल यात्रा शुरू होने से पहले लाल कृष्ण अडवानी ने कहा था “देखता हु किसने माई का दूध पिया है जो मेरे रथ यात्रा को रोकेगा’’. यही वजह है की लालू प्रसाद यादव ने लाल कृष्ण अडवानी को गिरफ्तार करवाया और कहा “ मैंने माँ और भैंस दोनों का दूध पिया है’’ I इस गिरफ़्तारी का परिणाम ये होता है की जैसे ही ये खबर दिल्ली पहुचता है तो समर्थन वापसी के चलते  BP SINGH की सरकार गिर जाती हैI

यात्रा में हुए दंगो से नाराज होकर 30 OCT 1990 को बड़ी संख्या में कार सेवक अयोध्या पहुचते हैं और मस्जिद के ऊपर चढ़कर अपना झंडा लगा देते हैं जिससे हालत और ख़राब हो जाती है. उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी तो इस दंगा को रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव कारसेवक पर गोली चलने की आदेश दे देते हैं. इस गोलीबारी में 5 कारसेवक की मिर्त्यु हो जाती है. जिससे अयोध्या ही नही पुरे देश में माहौल गरम हो जाता है. जिससे गुस्से में बड़े हिंदूवादी नेता अलग अलग दिशाओ से 5-5 हजार कारसेवक को लेकर हनुमान गाढ़ी की ओर निकलते हैं. गुस्साई हुई भीड़ को देखकर पुलिस गोलीबारी शुरू कर देती है जिससे कई कारसेवक मरे जाते हैं और उनकी लाशो को रखकर विरोध पर्दर्शन किया जाता हैI

उत्तर प्रदेश में BJP की सरकार बनने के बाद 10 JANUARY 1991 को अयोध्या में पुजारियों की सहमती से 2.77 एकड जमींन न्यास ट्रस्ट को दे दी जाती है. ये ट्रस्ट राम मंदिर बनाने के लिए काम चालू कर देता है, लेकिन इसका मामला कोर्ट में चल रहा था, जिससे कोर्ट द्वारा मंदिर बनाने के कम को रोक दिया जाता है. बैन लगने के बाबजूद मंदिर बनाने के लिए 1992 में कार सेवको का आह्वान किया जाता है. 6 DEC 1992 को 2 लाख कार सेवक अयोध्या पहुचते हैं, फिर ये भीड़ मस्जिद के तीन गुम्बद को तोड़कर मेन गुम्बद के जगह पर मंदिर बनती है और रामलला की मूर्ति वह रख देती है, जिस वजह से हिन्दू और मुस्लिम समुदाय में दंगा होना शुरू हो जाता है. हजारो की संख्या में लोग मरते हैं और केंद्र सरकार के द्वारा उत्तर प्रदेश में प्रेसिडेंसिअल नियम लागु कर दिया जाता है और कल्याण सिंह मुख्य मंत्री के पद से इस्तीफा दे देते हैं.

ये मुद्दा केवल भारत तक ही नही रह गया पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी हिन्दुओ की दुकाने जलाई जाने लगी और कई हिन्दू मंदिर तोड़ दिए जाते हैं.

फिर 15 OCT 2002 में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा सैकड़ो कार्यकर्त्ता को बुलाकर मंदिर निर्माण का कार्य शुरू कर देती हैI जब ये कार्यकर्ता अयोध्या से लौटकर जा रहे होते हैं तो जैसे ही इनकी ट्रेन गोधरा पहुचती है तो भड़के हुए लोगो द्वारा ट्रेन में आग लगा दी जाती है, जिससे 58 लोगो की मौत हो जाती है, जिससे देश का माहौल फिर से गरम हो जाता है. इसके बाद कोर्ट इस मामले में तेजी करने की कोशिश करती है और फिर ASI (ARCHILOGY SERVEY OF INDIA ) को इस मंदिर के आसपास खुदाई करके उससे मिलता जुलता साक्ष्य जुटाने के लिए बोला. तकीबन 6 माह की खुदाई के बाद ASI की रिपोर्ट आती है की जिसमे 10वी और 12वी सदी हिन्दू मंदिरों के साक्ष्य मिलते हैं जिसके आधार पर 30 SEP 2010 को कोर्ट का फैसला आता है, जिसमे कोर्ट पहली बार ये मानती है की यहाँ पर रामजन्म भूमि थी और इस भूमि को तीन भागो में बाँट दिया जाता है, जिसमे सीता रसोई और चबूतरा निर्मोही अखाडा को दिया जाता है , बिच का भाग राम मंदिर भूमि न्यास को को दिया जाता है और बाकि भूमि को सुन्नी बफ्फ़ बोर्ड को दे दिया जाता है. लेकिन कोई भी पक्ष इस फैसले पर सहमती नही जताती है और 2011 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट के पास चला जाता है.

फिर लगभग 6 साल तक सुप्रीम कोर्ट में केश रहने के बाद 2017 में इसकी सुनवाई शुरू होती है और तक़रीबन 2 साल के बाद यानि 9 NOV 2019 को 5 जज के एक बेंच द्वारा ASI के रिपोर्ट के आधार पर तकरीबन 2.77 एकड जमीन राम ट्रस्ट भूमि को सौप देती है. लेकिन इसका मालिकाना हक़ केंद्र सरकार के पास ही रहेगा और UP सरकार को आदेश दिया जाता है की मुस्लिम पक्ष को इस जमीं से दूर दूसरी जगह  5 ACR जमीन सुन्नी बफ्फ़ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए दिया जाये.

इस तरह सबसे लम्बे समय चलने वाले मामले का फैसला दिया जाता है. ये हमारे संबिधान का खूबसूरती है की फैसला आने के बाद न ही किसी पक्ष ने आपति जताई और न ही कोई हिंसा हुई.

और अब यानि 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर बनकर तैयार है और इसकी pran प्रतिष्ठा प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा किया गया .  

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